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मैं कहाँ झुकनेे वाला हूं...
मैं ख्वाबों का परिंदा पंख काटने
पर भी कहाँ गिरने वाला हूं...
तोड़ने आए हो मेरी लोहे जैसी हिम्मत
मैं ठोकरों के हथौड़े से कहाँ डरने वाला हूं...
छलनी रूह को और ज़ख्मी करने आए हो
मैं आखिरी सांस तक लड़ने वाला हूं...
हौंसला मिटाने की कोशिश कर रहे हो
मैं अपने खुदा के सिवा कहाँ झुकने वाला हूं...
© Shabbir_diary
#diarywalawriter
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