...

5 views

दर्द ए ज़ुबां
वो मुहब्बत नशीन आंखें
जिक्र मुहब्बत भरी लफ्ज़ थी
गर वो दिलकश इज़हार थी
तो बदला बदला सा मिजाज़ क्यों है

रात गवाह है उसके मसरूफियत के
पास उसके हम भी तो थे
वो रहते कहीं और मुब्तला
फिर किस हक़ से यह मुहब्बत कहते है

ज़रा सी अल्फाज़ के मुख्तलिफ है
क़तरा क़तरा वो दर्द देते है
एक लम्हा पूछते भी नहीं
फिर वज़हत भी क्यों...