...

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मैं और तुम
अजब रिश्ता बन गया है
ए कलम तेरा और मेरा,
अपनों में सबसे प्रिय लगने लगी हो तुम।
दबा क्या है मन में,
सब समझने लगी हो तुम।
समझने वाले चंद
और भी हैं जिंदगी में,
पर समझ तक ही सिमटे रह गए हैं।
तुम न जाने कैसे आगे बढ़
चाहने लगी हो मुझे।
इसी कारण
अब दिल को भाने लगी हो तुम।
© Joginder Thakur