...

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तेरा इश्क़ तेरी आरज़ू
तिरा इश्क़ ही अब मिरी बंदगी है
तिरी आरज़ू ही मिरी ज़िंदगी है

ख़बर ना लगी कब हुई है मुहब्बत
इसी से मिरी अब तो ताबिंदगी है

मिरे रब कभी ना ख़फ़ा मुझसे होना
मिरी अब तो तू ही शम-ए-ज़िंदगी है

नसीबा मिरा अब तिरे हाथ में है
अगर तू नहीं फिर तो अफ़्सुर्दगी है

नहीं और कुछ भी मुझे चाहिए अब
इबादत तिरी बस मिरी तिश्नगी है

सभी कुछ दिया है मुझे ज़िंदगी ने
वजह इसकी तेरी ही वाबस्तगी है

करे इल्तिज़ा तुमसे "मासूम" ये ही
मिले ना कभी ग़म तमन्ना जगी है।

*ताबिंदगी= नूर, रोशनी,
*अफ़्सुर्दगी = बेरौनकी,
*तिश्नगी = प्यास,
*वाबस्तगी = संबंध, लगाव

बहर: 122 122 122 122
© अमरीश अग्रवाल "मासूम"