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ग़ज़ल
राधा राणा की कलम से ✍️
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रुके तो,कारवां,रुका सा मिला ।
सफ़र ए ज़िंदगी ,धुआं सा मिला।

मिले तो हमें बस यहां अपने नही,
गैरों का तो एक,काफ़िला सा मिला।

बेरुखी उसकी हर अदा में थी,
इश्क़ भी हमको बद्दुआ सा मिला।

ना पा सके उसे,ना दीदार उसका ,
महबूब भी हमको,खुदा सा मिला।

मिलता था रूबरू मेरी सीरत से ,
वो शख्स जो सबसे जुदा सा मिला।