...

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तलास
ख़ुद के तलाश में ख़ुद को तलाश रहा हूं
कोशिश है मन की उद्विग्नता को समेटु
भागते शहर में अपना सुंकू तलाशु
ढूंढ लाऊं मैं वो खुशियां
जिसकी आगोश में मैं पूरा समा जाऊं।

मैं इक ज़िंदगी ढूंढ रहा हूं
थोड़ी खुशियां सहेजने के लिए,
ताउम्र भटकता रहा हूं
वो मेरे अंदर एकदम से घुटता रहा है
मैं निकलना चाहता हूं बाहर
हकीकत की जमीं पे बैठ
उस स्वप्निल चांद को निहारना चाहता हूं।

कुछ भी लिखूं आजकल
नाम मेरे महबूब का आ जाता है
नींद तो मेरी आंखों की है
ख़्वाबों को उनकी तलब हो जाती है
नाम अपना भी लूं तो जिक्र...