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#प्रयासरत
#पग-पग
पग -पग धरती पग -पग अम्बर,
क्या कुछ ना है पग -पग बोलो,
पग- पग अनिल व पग -पग सलिल,
फिर विध्वंस-तृष्णा क्यों तुम घोलो ??

क्रन्दन अनुत्तरित प्रश्नों का प्यासा,
मरुभूमि में कर्म-बीज को बो लो,
क़लम चुनो या तलवार नुकीली,
सघन परिणाम भविष्य में ढो लो।

श्रृगाल हुंकार प्रमुदित देखो भरते,
रज-वंदन कर स्व-मुँह को खोलो,
ठंडी-बुझी राख अवशेष बनो पर,
दिग-दिगंत तक अमरता से सो लो।

खंडहर मौन,पिपासु नज़रों से तकता,
जर्जर नाद के इस निशाँ को रो लो,
अनिल,सलिल बेकल व्यथित पुकारें,
अश्रु पोंछने प्रयासरत तुम अब हो लो।।
~Monika Agrawal ✒
(स्वरचित एवं मौलिक)

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