...

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गुजरते अजनबी
#गुज़रतेअजनबी
भीड़ से भरा स्टेशन था ,, हजारों मे थे लोग सभी,
ट्रेन का था इंतजार मुझे ,, आने मै था वक्त अभी,

कुछ पल के लिए मेरी नजरे घूमी ,, मन मै मेरे अशांति छाई ,, हजारों की भीड़ मै अलग सी वोह,, एक अप्सरा जैसे चलकर आई ।

प्लेटफार्म थे अलग अलग आमने सामने बैठे थे , जैसे दो पटरी एक दूसरे के parallel रहते थे, आंखों से उनकी मेल हुआ , उसी क्षण सारा खेल हुआ, आंखे उनकी ऐसी थी, जैसे मां परियों की बचपन मे कहती थी।

जानता था यह सिर्फ कुछ दिमागी ख्याल है, हकीकत से इनका कोई मेल नही, अंदर से आवाज आई जरूरी नही तू हर बार जीते यह जिंदगी है तेरा मन पसंद खेल नही।
to be continued.......

© Ritikarora