...

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काल
प्रचंड अग्नि की तरह बढ़ा
अखंड पाषाण सा खड़ा
राख के समंदर में पला
ये वो काल है, ये वो काल है

समेटकर गमों को सारे
पर्वत से भी ऊंचा बना
मुक्ति का द्वार दिखाने वाला
ये वो काल है , ये वो काल है

कृष्ण मोह माया से परे
तृष्णा की छाया से परे
वो दुखों का अंत करने वाला
ये वो काल है, ये वो काल है
© shadow