...

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"सहमे हुए क़दम"
अनजान सफ़र पर मंजिल की चाह,
सहमे हुए क़दम करते ग़ुमराह..!

दुःख पे जमाना करता वाह,
पर हमसे पूछो निकले मन से आह..!

कठिन डगर यूँ अगर मगर,
ज़िन्दगी की जद्दोजहद प्रत्येक सप्ताह..!

सुख का अभाव ग़म का प्रभाव,
जैसे डूबती ज़िन्दगी समुन्दर में अथाह..!

सच पे मौन ये जाने कौन,
झूठ के निकले कितने गवाह..!

अपने रहे बन के सपने,
यूँ ही हरदम बेपरवाह..!

ख़ुद को बचाने के हम बनाते बहाने,
रहते यूँ ही सहते दुःख लापरवाह..!
© SHIVA KANT