दो कश...🚬
#दोकश
बीते दिसंबर की एक शरद शाम
अपने लबों पे दो उँगलियाँ रखे
होटों से भाप का धुंआ उढ़ाते,
जैसे किसी ख्याली सिगरेट का कश लगाते,
मुझे देख वो हंसकर बोली थी,
सुनो तुम्हें पता तो हैँ ना
मुझे दायरे बनाते धुंए के मर्गोले कितने अच्छे लगते हैँ
मगर तुम. सिगरेट नहीं पीते हो,
भला क्या खाख जीते हो,
काश तुम्हें ये भोग...
बीते दिसंबर की एक शरद शाम
अपने लबों पे दो उँगलियाँ रखे
होटों से भाप का धुंआ उढ़ाते,
जैसे किसी ख्याली सिगरेट का कश लगाते,
मुझे देख वो हंसकर बोली थी,
सुनो तुम्हें पता तो हैँ ना
मुझे दायरे बनाते धुंए के मर्गोले कितने अच्छे लगते हैँ
मगर तुम. सिगरेट नहीं पीते हो,
भला क्या खाख जीते हो,
काश तुम्हें ये भोग...