...

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क्या पहचान दूँ...
क्या पहचान दूँ तुमको मैं आज अपनी ,
बोलो वो मेरे दिल के अज़ीज़..
क्या परोस दूँ मैं आज कलम से,
जो लगे दिल को बेहद लज़ीज़..!

हूँ मैं फ़क़त इक नज़र, मेरी सोच पार करे हर दहलीज़...
रखती हूँ ख्याल कुछ अलग मैं सबसे,
कुछ होते हैं नाराज़ मुझसे, पर मैं नहीं कोई सोच की मरीज़..!

हँसा गए आज ये नज़्म सारे, ये नज़्म आज खुशी के आँसू रुला गए...
जो रहती है वक़्त के साथ चलने की कोशिश मेरी ,
हम आज उस वक़्त के करज़दार बन गए..!

रोक सको तो कोई रोक लो, ये पल कल मे ना वदल जाए...
है रूहानी मेरे हमदम की स्याही आज ,
जो कलम की लबों से एक एक एहसास छु गए..!

बख़्श कर मुझको एक रहबर ख़ास..
ख़ुदा मुझे कलम से एक हमदम मिला दिए..
करती रहूँ मै इबादत ऐ ख़ुदा तेरी, एक हमदम ख़ुदा सा पा कर...
या यूँ कहूँ शायद ख़ुदा से ही हम मिल लिए..!

जयश्री✍🏻