क्या पहचान दूँ...
क्या पहचान दूँ तुमको मैं आज अपनी ,
बोलो वो मेरे दिल के अज़ीज़..
क्या परोस दूँ मैं आज कलम से,
जो लगे दिल को बेहद लज़ीज़..!
हूँ मैं फ़क़त इक नज़र, मेरी सोच पार करे हर दहलीज़...
रखती हूँ ख्याल कुछ अलग मैं सबसे,
कुछ होते हैं नाराज़ मुझसे, पर मैं नहीं कोई सोच की मरीज़..!
हँसा गए आज...
बोलो वो मेरे दिल के अज़ीज़..
क्या परोस दूँ मैं आज कलम से,
जो लगे दिल को बेहद लज़ीज़..!
हूँ मैं फ़क़त इक नज़र, मेरी सोच पार करे हर दहलीज़...
रखती हूँ ख्याल कुछ अलग मैं सबसे,
कुछ होते हैं नाराज़ मुझसे, पर मैं नहीं कोई सोच की मरीज़..!
हँसा गए आज...