...

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हुस्न...
तुझे अपने हुस्न पे ये जो इतना गुमान है
मिट्टी ही है सब, मिट्टी हो जएगा..
तुझे इतना सा तो भान है !!

चलो माना कि तेरी जुल्फों को मैने छुआ था
पर दिल को मेरे कहाँ कुछ हुआ था ।

हां थोङी अलग जरूर थी तेरी आंखों की बातें
जमाई थी महफि़ल रंगीन उसी ने पुरी रातें ।

फिसल गई जुबाँ अब तो बच के कहा जाओगी
सादगी का नया चेहरा अब कहाँ से लाओगी

क्यों रूठी हो मेरी ऊन बातों से
कर लो समझौता अब हालातो से

बैसे भी.....

मेरी बातों का बुरा मान जाना कहाँ तक सही है
ऊपर से नीचे तक तो तु वही है.....

© ya waris