...

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ग़ज़ल2
हिज्र-ए-यार की बातें करती आजकल होगी
वस्ल-ए-यार होगा कब गिन रही वो पल होगी

प्यार बाँटने से ही प्यार मिलता है यारो
फूल क्यों खिलेंगे जब ख़ार की फसल होगी

साफ़ साफ़ बोलो तुम इस तरह घुमाओ मत
सीधी बात समझाओ यार वो सरल होगी

क्या मुआफ़ियाँ मैं ही माँगती रहूँ पैहम
आपकी तरफ़ से भी क्या कभी पहल होगी

सानी और ऊला में रब्त है अभी कमज़ोर
आएगा असर इनमें जो अदलबदल होगी

शाइरी की महफ़िल सी ज़ीस्त की हक़ीक़त है
क्या पता कि किस पल में आख़री ग़ज़ल होगी

चुप्पियों का हासिल भी कुछ 'रिया" नहीं होता
बात करने से मुश्किल आपकी ये हल होगी
#riyakighazal