ग़ज़ल2
हिज्र-ए-यार की बातें करती आजकल होगी
वस्ल-ए-यार होगा कब गिन रही वो पल होगी
प्यार बाँटने से ही प्यार मिलता है यारो
फूल क्यों खिलेंगे जब ख़ार की फसल होगी
साफ़ साफ़ बोलो तुम इस तरह घुमाओ मत
सीधी बात समझाओ यार...
वस्ल-ए-यार होगा कब गिन रही वो पल होगी
प्यार बाँटने से ही प्यार मिलता है यारो
फूल क्यों खिलेंगे जब ख़ार की फसल होगी
साफ़ साफ़ बोलो तुम इस तरह घुमाओ मत
सीधी बात समझाओ यार...