...

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तलब की इंतहा...!

तेरी तलब हमें ऐसी लगी,
कि उम्र बीत गई, लेकिन तलब खत्म न हुई।
इशारे मिलते थे रोज,
दिल से हमें आपसे बातें करने के,
दिल में आप ही बसे हो, और कोई नहीं।

इल्तजा भी करूँ तो...