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जल चावल

© जल को चावल की नुमाइश होंगी,

भीड़ में जल के जब अकेली होंगी चावले,

इनमे जल के बुलबुले में हसती हुई चावलों की सगाई,

चावलों का बदन मरमुरी सा हैं, गरम जल की वफाओं से

ये तू जान ले....



चावल कैसे होता बेकरार हैं,

खुमारी से तू ये जान ले...

बड़ी कम जगह होती है,

चावल बदन को बहने की,

पर जल की मुहब्बत होती कम नहीं,

जल ने लगाए बदमाशी के मेले साथ ये,

चावल बिदक जाएगा इस बदमाशी के नजरों से.

चावल जल के खयालों में, बहुत बिदकता है न,

चावल करीब क्या जल के, जल में वो डूबा है।

जल के हाथ से, वो कहीं किसका नहीं,

चावल भीगे जल के अंदर, एक लोटे के अनुरूप,

भीगे हुए गरम जोश में, पिघलने के संदेश से,

यूं मुहब्बत होती जल और चावल की, सफेद जोश से,

रंग शहर हमराही पोशाक की क्षण, लगन होती रहे,

मगन ये अकाल जल का, समुंदर पर इलाही होती रहे

चावल यूं हौले हौले ढूंढे रास्ते, बचने के लिए जल से

यूं जल में उबाले आते रहे, बिखरते हुस्न और सो गए,

जल में चावल गर्मी में इतना तराशा गया, प्यार हो गया

जल के इन हुस्न नजरों से, चावल का दामन जम गया,

भीगी हुई जल के माहोल ने, चावल को दिवाली किया

लिए न हाथ कुछ भी संघार के लिए, साथ कुछ भीतर जल के सावला रंग शहर बन गया।

जल की चाहत बढ़ती हैं, जल से निवेदन करने लगा,

और भीगी चावल को अब और रहना हैं..



चावल रहता हैं वहां जहां जल शरण लेता है कभी,

इस बहाने रोजाना भीगने का दिल किया,

चावल और जल का साथ, पुलाओ को जख्मी किया,

इस मुहब्बत को खाने की तरावट कह दिया।

छोलों और भतूरों को भी नमकीन कर दिया,

जैसे मसलों को और फना मैदों में कर दिया,

मैदो के अंगूरों से तेल को गुनगुना कर दिया,

जिस रंग संग छोलों को इश्क होता भटूरों से,

ऐसे जल को चावल ने इश्क में जालिम कर दिया।

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