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इंतहा
तुम्हारी विविध कविताओं में
ये जो जिक्र आता है कभी कभी
हम जो पूछे
तो बात बदल देते हो
बड़े संभाल के रखते हो ,
वो गुलाब तुम
पन्ने दर पन्ने पलटते हुए
हम जो पूछे
तो बात बदल देते हो
अक्सर गुम हो जाते हो ,
शाम की तन्हाई में तुम
हम जो पूछे
तो बात बदल देते हो
सताइश दिखती है
तुम्हारे चेहरे पर
जेहन में किसी की मौजदगी की
हम जो पूछे
तो बात बदल देते हो
उम्र ढलती जा रही है
तुम संग मेरी भी
हम जो पूछे ,वजह देरी की
तो बात बदल देते हो
स्मृति.
ये जो जिक्र आता है कभी कभी
हम जो पूछे
तो बात बदल देते हो
बड़े संभाल के रखते हो ,
वो गुलाब तुम
पन्ने दर पन्ने पलटते हुए
हम जो पूछे
तो बात बदल देते हो
अक्सर गुम हो जाते हो ,
शाम की तन्हाई में तुम
हम जो पूछे
तो बात बदल देते हो
सताइश दिखती है
तुम्हारे चेहरे पर
जेहन में किसी की मौजदगी की
हम जो पूछे
तो बात बदल देते हो
उम्र ढलती जा रही है
तुम संग मेरी भी
हम जो पूछे ,वजह देरी की
तो बात बदल देते हो
स्मृति.
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