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शेरोंवाली मां
माटी के इस तन में प्राण तुम हो माता"
कर दो भव से पार ओ शेरावाली माता।।
तेरे दरबार को सजाने लाई हूं फूलों की माला।
मां नित गंगा के जल से पखारुं चरण तुम्हारा।।
मौड़िया अचरी चढ़ाऊं लगा कर खूब झाला।
सिंदूर से सजाऊं शेरोंवाली मां मांग तुम्हारा।।
तुम्हें अपने घर बुला कर मैया श्रृंगार तेरा करूं,
तेरी आरती उतारुं कपूर की थाल सजा कर।।
चुनरी चढ़ाऊं लाल बाजार से मंगा कर।
भोग लगाऊं मां अपने हाथों से बना कर।।
अपने कर कमलों से पावन ये घर कर दो।
मैं आई शरण तिहारे मेरी विपदा को हर लो।।
मैं दीन हीन मुर्ख अज्ञानी,पूजा विधि और पाठ ना जानी।
करूं किस विधि हे मां तेरे स्वागत आगमन की तैयारी..??
किरण
कर दो भव से पार ओ शेरावाली माता।।
तेरे दरबार को सजाने लाई हूं फूलों की माला।
मां नित गंगा के जल से पखारुं चरण तुम्हारा।।
मौड़िया अचरी चढ़ाऊं लगा कर खूब झाला।
सिंदूर से सजाऊं शेरोंवाली मां मांग तुम्हारा।।
तुम्हें अपने घर बुला कर मैया श्रृंगार तेरा करूं,
तेरी आरती उतारुं कपूर की थाल सजा कर।।
चुनरी चढ़ाऊं लाल बाजार से मंगा कर।
भोग लगाऊं मां अपने हाथों से बना कर।।
अपने कर कमलों से पावन ये घर कर दो।
मैं आई शरण तिहारे मेरी विपदा को हर लो।।
मैं दीन हीन मुर्ख अज्ञानी,पूजा विधि और पाठ ना जानी।
करूं किस विधि हे मां तेरे स्वागत आगमन की तैयारी..??
किरण
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