...

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तुमसे मिलना
तुमसे मिलना कि जैसे
आईने का ये कहना
ढूंढती हो किसे हर पल दिन-रैन
ख्वाबों की डाल पर बसा है वही क्या ?
फिर आंखों को भींच बगल ताक लेना
तकते तुम्हारे अक्स का पिघलना, और गुम हो जाना
कि गुम होता है जैसे बचपन में तंग गलियां
कि उन्हीं गलियों में दो प्रेमी का मिलना
सबकी नज़रों से छुपकर, नज़रें चुराकर
चुरा लेते हैं...