...

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तुम हों तो
आज़ में जीना हैं मुझको
जो संग तेरा मुझको हों तो
इस हसरत को मिलें किनारा
जो संग मेरे तुम हों तो

बात पुरानी छोड़ों सारी
नया समा जीते हैं
चल मेरे हमराज सनम
बनाएं नई रीते हैं

तुम हों तो
सब कुछ हैं यहीं
तुम ना हों तो
सुकून कुछ नहीं

लम्हात हैं आगे कितने
तुम फिर भी खफा हों
मुझको फ़िक्र तेरी रहें
करतीं हों मुझ पर जफा हों

रातों को मेरी
सुबहा तुम कर दो
जीवन में राहत का
थोड़ा वक्त कर दो

कहती हैं दुनिया
ख़ुदा यहीं हैं
लकीरों में क्यों फ़िर
इश्क़ लिखता नहीं हैं

तुम हों तो
सांसें यहीं हैं
मेरी रूह पे
तु ही लिखीं हैं
तुम हों तो
मंजिल दिखी हैं
सितमगर सी
हसरत मिलीं हैं
प्यार के बदले
क्यों नफरत मिलीं हैं

सिला तुम कुछ
हसीन दो तो
ख़ुदा दिखेगा
जो तुम हों तो

शहर में अक्सर
रूसवा हुए हैं
आशिक़ सच्चे
जुदा हुए हैं

हमें आलम ऐसा ना देना
इकरार दिल से तुम कर देना
आमद करना जीवन में मेरे
मुझको थोड़ा सुकून देना

ठहर कर
मुंतजिर बनूंगा
तुम हों तो
सब कुछ सहूंगा
इस तलब ओ तिष्णगी में
हर पल बहूंगा
तुम हों तो
इश्क़ तुमको कहूंगा

दूर तुमसे जा ना सकेंगे,तुम कह दो तो
सब कुछ मिल जाएगा,जब पास तुम हों तो

-उत्सव कुलदीप















© utsav kuldeep