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सावनप्रिया
ऐ ठनका! तू ठनक,
जरा, पर होश में आके;
खो ना जाऊं! कहीं
किसी आगोश में जाके।
बस थिर रह, तू पलक,
झपक ले एक निमिष का;
आते होंगे मेरे प्रिय,
है बोझ तपिश का।
ऐ दादुर! ना डांट
मुझे तू ऐसे पागल;
मैं हूं उनकी एक
दुलारी, मेरे कायल।
ये झिंगुर कैसे बोलें-
समझा दे सावन।
आएंगे जैसे ही,
मैं कह दूंगी अनबन।
तू अंधेरी रात!
हृदय है तेरा काला;
तू क्या समझेगी?
होता क्या प्यार निराला।
© सावनप्रिया:अंश
© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत'
जरा, पर होश में आके;
खो ना जाऊं! कहीं
किसी आगोश में जाके।
बस थिर रह, तू पलक,
झपक ले एक निमिष का;
आते होंगे मेरे प्रिय,
है बोझ तपिश का।
ऐ दादुर! ना डांट
मुझे तू ऐसे पागल;
मैं हूं उनकी एक
दुलारी, मेरे कायल।
ये झिंगुर कैसे बोलें-
समझा दे सावन।
आएंगे जैसे ही,
मैं कह दूंगी अनबन।
तू अंधेरी रात!
हृदय है तेरा काला;
तू क्या समझेगी?
होता क्या प्यार निराला।
© सावनप्रिया:अंश
© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत'
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