...

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वक्त
वक्त के कैनवास पर तकदीर के रंग हजार मिले,
मंजिल का तो पता नहीं पर हमें रास्ते बेशुमार मिले.
भटके हुए मुसाफिर ठहरे हम दुनिया के गलियारे में ,
आशाओ की बस्ती में देखा निराशा के घर -द्वार मिले.
उम्मीदों की पूंजी लेकर जब हम घर से निकल लिए,
शाम को जब मुठ्ठी खोली तो निराशाओं के अंबार मिले.