उलझन
मैं कभी नहीं कह पाई
जो मन में आता था
बोल देती थी
सुन चौक जाते थे
सहन नहीं होता था
ख़ुद परछाई को देख
नमः आंख हो
मूर जाती थी
एक जहां की खोज में
जहां क़दर हो मेरी
भले खड़ी बोलती थी
दिल की बात सीधा रहती थी
ओरु के जैसे ना
जलेबी...
जो मन में आता था
बोल देती थी
सुन चौक जाते थे
सहन नहीं होता था
ख़ुद परछाई को देख
नमः आंख हो
मूर जाती थी
एक जहां की खोज में
जहां क़दर हो मेरी
भले खड़ी बोलती थी
दिल की बात सीधा रहती थी
ओरु के जैसे ना
जलेबी...