प्रिय सखी
हर प्रभात एक पीड़ा नई
हर रात द्वंद्व मिला हमको,
कुछ चैन नहीं इस दुनिया मे
सबक यही मिला हमको।
जो प्रीति मिली तुमसे मुझको
जग ने उसको समझा ही नहीं,
आखिर क्यों किया जगत ने यूँ
पृथक पृथक तुमसे हमको।।
माना कि अपने मार्ग पृथक
पर लक्ष्य हमारा एक सखी,
अभी चले हम भिन्न वेग से
पहुंचेंगे कल रोज सखी।
जो मजा संग चलने मे है
उसका कोई विकल्प नहीं,
तुम मानों या न मानो प्रिय
हम एक प्राण दो देह सखी।।
पी लिया जहर का प्याला भी
मृत्यु आलिंगन दे ना सकी,
साकी तेरे मधुर अधरों की
मदिरा मुझको मिल ना सकी।
जो प्रेम असत तो सकल जगत मे
जीवन ही मिथ्या भ्रम है,
जन्मों की यह वृहद श्रृंखला, पर
साकी मुझको मिल ना सकी।।
तू "भाटी " की बृहद कल्पना
वाणी की पहचान सखी,
साँसों का अंतर्गायन तू
प्राणों की हुंकार सखी।
मैं क्लांत सोचा करता हूँ
क्यों मैं ही बलहीन यहाँ,
सबकुछ होकर भी आखिर हूँ
चरणों का उपहार सखी।।
© KunwarPratap
हर रात द्वंद्व मिला हमको,
कुछ चैन नहीं इस दुनिया मे
सबक यही मिला हमको।
जो प्रीति मिली तुमसे मुझको
जग ने उसको समझा ही नहीं,
आखिर क्यों किया जगत ने यूँ
पृथक पृथक तुमसे हमको।।
माना कि अपने मार्ग पृथक
पर लक्ष्य हमारा एक सखी,
अभी चले हम भिन्न वेग से
पहुंचेंगे कल रोज सखी।
जो मजा संग चलने मे है
उसका कोई विकल्प नहीं,
तुम मानों या न मानो प्रिय
हम एक प्राण दो देह सखी।।
पी लिया जहर का प्याला भी
मृत्यु आलिंगन दे ना सकी,
साकी तेरे मधुर अधरों की
मदिरा मुझको मिल ना सकी।
जो प्रेम असत तो सकल जगत मे
जीवन ही मिथ्या भ्रम है,
जन्मों की यह वृहद श्रृंखला, पर
साकी मुझको मिल ना सकी।।
तू "भाटी " की बृहद कल्पना
वाणी की पहचान सखी,
साँसों का अंतर्गायन तू
प्राणों की हुंकार सखी।
मैं क्लांत सोचा करता हूँ
क्यों मैं ही बलहीन यहाँ,
सबकुछ होकर भी आखिर हूँ
चरणों का उपहार सखी।।
© KunwarPratap