...

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ऐ स्याही रंग दे मुझे
ऐ स्याही रंग दे मुझे मैं कुछ रंगना चाहता हूं
मैं तकदीर का नही अपना लिखा मुकद्दर चाहता हूं
बुनियाद मिट्टी की नही पसीने की चाहता हूं
ऐ स्याही रंग दे मुझे मैं कुछ रंगना चाहता हूं
मैं सफर की चाह में मंजिल को पीछे छोड़ आया हूं
मुक्तलिफ उससे जुड़े सब छलावे छोड़ आया हूं
ऐ स्याही रंग दे मुझे मैं कुछ रंगना चाहता हूं
मैं चाहता हूं कि तुम मेरे सफर की हम सफर बनो
पर मैं वो खयाल भी कुछ वक्त पहले ही छोड़ आया हूं
ऐ स्याही रंग दे मुझे मैं कुछ रंगना चाहता हूं
उस दिन की पहली किरन की सी मुस्कान चाहता हूं
मैं सभी कोनो को ढके आसमान के ऊपर मकान चाहता हूं
ऐ स्याही रंग दे मुझे मैं कुछ रंगना चाहता हूं
अगर लिखा जा सके तो मैं लिख दू अपने सफर की कहानी
इस आसमा पर कुछ लिख के मिटा दू और लिख दू खुदको
ऐ स्याही रंग दे मुझे मैं कुछ रंगना चाहता हूं
मैं अपने इस अल्हड़पन के कर को कर गुजरना चाहता हूं
मैं उसकी आंखों में झांँक कर भी मुकरना चाहता हूं
ऐ स्याही रंग दे मुझे मैं कुछ रंगना चाहता हूं
ऐ स्याही मुझे कुछ ऐसे रंग दे की
मैं आखरी सांस के बाद भी जीना चाहता हूं
ऐ स्याही रंग दे मुझे मैं कुछ रंगना चाहता हूं

~शिवम् पाल

© शिवम् पाल