...

2 views

होली
हिरण्यकश्यप दुराचारी की
दुराचारिणी ही एक बहना थी
ऋषि कश्यप-दिति की थी सुता
पर कलुषित बुद्धि ही उसकी गहना थी
नारायण के प्रिय भक्त को भष्म करने की उसकी मंशा थी
अग्नि से भी जो ना जले ऐसी वो विध्वंसा थी
श्री हरि पालन कर्ता के मन मे था इनसे क्षोभ बड़ा
हिरण्यकश्यप के ह्रदय में भी विश्व विजय का था लोभ बड़ा
प्रह्लाद को गोद मे लेकर बुआ ने देनी चाही थी सौगात बड़ी
श्रद्धा और भक्ति के उपासक के जीवन की थी वो रात बड़ी
वरदान के मद में होलिका थी अग्नि के समक्ष अड़ी
जीता सत्य  हुई पराजय पापन की जो करती थी सब बात बड़ी
पाप के नाश की स्मृति में ही हम ये पर्व मनाते हैं
अधर्म के रूप की होलिका को तभी से हर वर्ष जलाते हैं
होली के पर्व की पावन बेला में सिर्फ सौहाद्र का ही विकल्प धरे
इंद्रधनुषी हो जीवन सब का  आओ ये संकल्प करें।।

मेरे सभी पाठक बंधुओ को रंगोत्सव की ढेर सारी बधाइयां....खुश रहें स्वस्थ रहें और अपने परिवार के साथ प्रेमपूर्वक रहें।


© AkaSSH_Ydv_Dev