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जी चाहता है
"जी चाहता है"

क्यूं कोई इतना अजीज होता, प्यार लुटाऊॅं जी चाहता है।
कोई हद होती नहीं प्यार में हद से गुजरने को जी चाहता है।

उनकी मासूमियत तो देखो समझके भी नासमझ बने वो
भोलेपन की इसी अदा पर कुर्बान जाने को जी चाहता है।

सजता है जो सुरमई आंखों में निगाहों का जादू बनके ।
उनके कजरारे नैनों का काजल बनने को जी चाहता है।

दुआ मांगू रब से, हर ख़ुशी से भरा रहे दामन उनका ।
उनके लबों पै खिलूं मैं मुस्कान बनकर , जी चाहता है।

माथे का कुमकुम मैं बनूं या करूं सोलह सिंगार उनके।
पायल बन चल दूं मैं संग संग उनके, ये जी चाहता है।

सूरत से प्यारी सीरत उनकी , पाकीज़गी है अदाओं में ।
उनकी मासूमियत पर अब जां लुटाने को जी चाहता है।

बने उजाला दिन का या बनके फानूस रातों को रोशन करें।
उनका सुकून, राहत 'सुधा' , तबस्सुम बनने को जी चाहता है।