...

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शाम!
एक शाम फिर गुलाबी हो गयी..
रोशनी की चमक आधी हो गयी..
हवा में बहती उदासी हो गयी!

तुम फिर उतरना आँखो में,
आँसू जैसे छलकने को..
हँसी जैसे कुछ पल ठहर ने को,

कुछ मोतियों की फिर बर्बादी हो गयी..
फीकी काजल की स्याही हो गयी..
एक अकेली शाम फिर गुलाबी हो गयी!

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