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सिंदुरी भोर
अलसाई प्रकृति जाग उठी, लेकर एक मीठी सी अंगड़ाई,
सिमट गई निशा की चादर, भोर ने सिंदूरी चुनर बिछाई।
तमोभेदी ने भेद दिए सारे तम, प्रकाश की किरणें बिखेर कर,
धरा भी पाकर स्पर्श कोमल रश्मियों का, जी भर कर मुस्काई।
सृष्टि के कण-कण में भर गया नया जीवन, उल्लास है चरम पर,
जीवन ऊष्मा की उर्जा से हृदय में,दिव्यता की आभा भर आयी।
© "मनु"
सिमट गई निशा की चादर, भोर ने सिंदूरी चुनर बिछाई।
तमोभेदी ने भेद दिए सारे तम, प्रकाश की किरणें बिखेर कर,
धरा भी पाकर स्पर्श कोमल रश्मियों का, जी भर कर मुस्काई।
सृष्टि के कण-कण में भर गया नया जीवन, उल्लास है चरम पर,
जीवन ऊष्मा की उर्जा से हृदय में,दिव्यता की आभा भर आयी।
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