अहमियत बस इक जरूरत इक वक्त तक
किस कदर हम जले बुझे हुए अब राख को देखो
पेड़ से टूटकर क्या कीमत है जमी पर पड़े साख को देखो
हसरते टूटी ,टूट कर बिखर गये
सबकुछ ख़त्म सा हो गया ,कुछ लफ्ज़ भी न निकले...
पेड़ से टूटकर क्या कीमत है जमी पर पड़े साख को देखो
हसरते टूटी ,टूट कर बिखर गये
सबकुछ ख़त्म सा हो गया ,कुछ लफ्ज़ भी न निकले...