...

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व्यस्तता में खुशियों की अस्तता
व्यस्त जीवन में प्रेम हुआ अस्त,
खुशियों की किरण में प्रेम की लहर हुई खत्म।
ना टूटे तारे से उम्मीद,ना बहती लहरों से प्रीत,
व्यस्त रहना ही है हमारी रीस।
समंदर किनारे बैठ लहरों को देखना,
ख्वाबों में ही रह गया है प्रेम को महसूस करना।
हकीकत में तो नकली हंसी और शुकुन का प्रपंच है,
हकीकत में हकीकत कुछ नहीं बस धोखाधड़ी का संगम है।
व्यस्त रहो, मस्त रहो, खालीपन से बचे रहो,
खालीपन में जो जाओगे, जीवन की हकीकत से टकराओगे,
और चूर चूर हो जाओगे,
जब स्वयं को ही ( भीतर से) खाली पाओगे।

: काम करना अनिवार्य है। पर काम को जीवन की मूलभूत खुशियों से ऊपर समझना नादानी है।
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