...

12 views

टिकटॉक एक जाल


टिकटॉक सब देखें
बच्चें देखें
जवान देखें
बुङ्ढे भी देखें ।
टिकटॉक
देख देख सब हँसे
पता नही किस पे हँसे
अपने पे या दूसरों पे
या फिर अपनों पे ही हँसे
या फिर अपनी बचकानी
हरकतों पे हँसे
या फिर अपनी संस्कृति पे
जिसका ह्रास हो रहा है
इस टिकटॉक ऐप्प पर
उस पर हँसे ।
सब लगे है
अपने समय और संस्कृति को
बर्बाद करने के टैलेंट में
अपना समय बर्बाद कर
सब हँसे या खुद ही
इसके जाल में फंसे ।
एक बार टिकटॉक चालू
फिर देखो इसके झटके
एक दो तीन चार पाँच घण्टे तक
आपको हिलने की जरूरत भी नही
आँखों को झपकाने की ज्यादा
जरूरत नही पड़ेंगी
पास कौन बैठा है
वो भी आपको देखने की तकलीफ होगी
फिर कोई मर रहा है
तो मरे आपको देखने की
जरूरत नही क्योंकि हम
खुद ही फंस गए है ।
सब लगे है
वीडियो बनाने की
होड़ में
और लगे है
लाइक और कमेंट की दौड़ में ।
भले ही घर वाले
भूखे मर जायें
मगर ये नशा
जिसी को लग जाये
तो मरते दम तक
नही छूट पाये ।
ऐसे टिकटॉक से क्या ख़ाना
क्यों पीछे पड़ा है इसके जमाना ।
टिकटॉक एक जाल है
इससे पूरी दुनिया बेहाल है ।
क्या नेता
क्या अभिनेता
क्या छोटा
क्या बड़ा
क्या नर
क्या नारी
सब पे है टिकटॉक भारी
इससे दुनिया है हारी
इसके पीछे पागल
है दुनिया सारी
अब भी है यह
टिकटॉक का
पागलपन जारी
टिकटॉक है
एक धीमा जहर
ढायेगा किस पे
कब बन के कहर
कुछ कह नही सकते
सही बात कोई भी
नही सुनते ।
टिकटॉक एक जाल है
कुछ को छोड़ के
सब इससे बेहाल है
उनकी बिगाड़ दी चाल है
फिर भी सब इस पे निहाल है ।
टिकटॉक एक जाल है
करता सबको बेहाल है ।।



मुकेश कुमार
(हड़वेचा,राजस्थान)