...

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अतीत के टुकड़े
एहसास की धरती पर उगती है
कुछ अनकही सी बातें कुछ भूली बिसरी यादें
वक्‍़त के कुछ गुज़रे लम्हे कुछ अजन्मी सी भावनाएं
कुछ प्‍यार...कुछ धोखे...कुछ मेहरबानियाँ...कुछ प्यारे से दुश्मन
मुझे सपनो के चाँद पर उड़ाते हुए वो तुम्हारे कुछ वादे
वो खुरदरी, पथरीली...नुकीली...बदहवास
हताश सी परछाइयाँ...वो थोड़ी सी रुसवाइयां...
जब मेरे अतीत का कोहरा लिए छंटती है
तो स्‍मृतियों की आकृति में उठते हैं कई सवाल
जो मांगते है मुझसे जवाब...
मेरे भीतर की रूह को ठठोल देते है
और कहते है की क्या मैंने जो तुझे जिंदगी माना
तुझ पर एतबार किया क्या वो मेरा भ्रम था?
या फ़लक से उतर आया वो चाँद था
जिसने मेरे एहसास की ज़मी पर तेरे ख्वाब बोये थे
जो आज अतीत के कोहरे में कहीं खो सा गया है.

© Shagun