...

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ऐ अजनबी.. ऐ हमसफर
ऐ अजनबी..
ऐ हम सफर..
जो चलता साथ मेरे हमेशा..
उदासियों मे भी.. जो समझ पाता है
मेरे अनकहे लफ्ज़..
किसी भी परिस्थिति मे नहीं छोड़ता मुझे..
मेरे इस खामोश भरी दुनिया का आवाज़ है।
नहीं... नहीं.... हकीकत नहीं..
मेरी कल्पनाओ में विचरित होता ।
यही कही
मेरे मन में जिससे मैं कह देती हूँ
सारी बात..
बेधड़क..
बेबाक..!