...

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रावण हूं मैं
रावण...
हां हूं मैं रावण
पापी हूं, अधर्मी हूं, अहंकारी हूं
लेकिन याद रखना...
महाप्रतापी और महापराक्रमी योद्धा भी मैं ही हूं
त्रिलोक विजेता भी मैं ही हूं
प्रखंड विद्वान और महाग्यानी भी मैं ही हूं
और शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता भी मैं ही हूं

सालों से मुझे जलाते चले आ रहे हो
और खुद पाप पर पाप किए जा रहे हो
अरे सालों से मुझे जलाते चले आ रहे हो
और खुद पाप पर पाप किए जा रहे हो

हां था मैं गलत
हां था मैं गलत
जो किसी और के घर की स्त्री को उठाकर यह सोचा की मैंने अपने कुल की मर्यादा और इज्जत बचाई थी
लेकिन याद रखना की वो अपहरण मर्यादा मैं था और मेरी छाया भी सीता पर पड़ ना पाई थी
क्या हुआ इतने भीषड़ युद्ध के बाद
क्या सीता तनिक भी राम के साथ रह पाई थी
इतना ही लगाव था अपने घर की स्त्री से तो
मर्यादा पुरषोत्तम ने अग्नि परीक्षा क्यों दिलाई थी

पूरे ब्रह्मांड में मेरे जैसा शिव भक्त नहीं
पूरे ब्रह्मांड में मेरे जैसा शिव भक्त नहीं
जब शिव तांडव स्तोत्रम गाया था
तो खुद महेश ने मुझे चंद्रहास थमाया था
पांच बार ब्रह्माजी को तपस्या करके बुलाया था
तब जाकर नाभी मैं अमृत कुंड पाया था

रावण संहिता जोकि ज्योतिषि श्रेष्ठ मानी जाती है
और आज भी मेरी ही छवी बलिष्ठ मानी जाती है

अहंकार मेरे अंदर था
पाप मैंने किया था
लेकिन एक बात याद रखना की नारायण खुद मुझे मारने आए थे
और उसके बाद लक्ष्मण भी मुझसे ज्ञान लेने आए थे

पाप के नाम पर मुझे जलाते चले आ रहे हो
और खुद ही अपने समाज को भस्म किए जा रहे हो

मेरी हर व्याख्या अद्भुत है
और तुम रावण को जलाना छोड़ो
अपने अंदर का इन्सान जगाओ
इन्सान ही बन जाओ
इन्सान ही बन जाओ

© Navi