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सभी तो गुणगान ही करते हैं
सभी तो देश का गुणगान ही करते हैं

खुद पढ़के और पढ़ाके एहसान करते हैं
जो घूस और कमीशन पर काम करते हैं
कोई लूटे,कोई कूटे, कोई घूंटे मंद-मंद
और वो ही मंदिर मंच पर श्रीराम करते हैं।

कहीं पानी में भीगते हैं सिर किसान के
कहीं सड़क की ईंट चुराकर वो मकान करते हैं
है हमें भी अधिकार बस वोट, कोट, प्लोट का
वो नोट की ही चोट पर हर काम करते हैं

मैं तो पेट काट-काट मरा बीस गज जमीन को
और बच्चे अपने गांव में तंबू तान रहते हैं
वो जो आज खड़े थे कुछ हाथ जोड़ गलियों में
बरबीघा चकबंदी अपने नाम करते हैं।

हम कार चलाते हैं कुछ लोन किस्त भर-भर
कुछ टैक्स देके ट्रैक्टर पर शाम करते हैं
वो तो हमसे भी मुफलिस बन बैठे हैं कुर्ते में
₹2 दिल्ली कैंटीन में जलपान करते हैं ।

हम तो अगर मंडी में भी खड़े भी तो क्यों खड़े
डंडा सब्जी वाली को हलकान करते हैं
हाय हाय रे मेरे देश एक आप ही हैं ईमानदार
और आप ही समाज सेवा का ध्यान करते हैं।।


© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत'