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#लोबान
जीवन है या मृग मरीचिका,
नहीं जानती.....!!
बस दौड़े जा रही हूँ अनवरत
उलझती साँसों को थामने का
प्रयास करती
कुछ व्यथित,कुछ बेकल सी.........
हृदय में वेदना का गुबार लिए
इक छोर पकड़ में है उँगलियों के
पोरों के बीच........
कसकर पकड़ लिया है उसे
डर है कहीं छूट न जाए वो भी...........
नि:स्तब्ध रातों में कुछ बेजान,तो
कुछ निख़री सी स्मृतियों की आवाज़ें__
ज़ोर-ज़ोर से दूर कहीं पटल से
कानों में दस्तक देती उन परछाइयों की
पदचाप से सकुचाती,घबराती मैं________
अकस्मात सघन तिमिर को चीरता,
उभरता एक प्रतिबिंब............
जाड़े की धूप सा गुनगुना
अंतर्मन को शीतलता देता.......
सहसा विलीन हो गईं वो हिलोरें लेती
दर्द की लहरें__________
विस्तार हो रहा था उस धुंधली कृति का,
शनै: शनैः कर रहा था वो मुझे आलिंगनबद्ध.........
ध्यान से देखा तो वो प्रेम था..हाँ..प्रेम.....!!
सृष्टि का अद्भुत सुखद सृजन-प्रेम!!
और तभी महक उठी मैं उसकी
बिखरती लोबान सी ख़ुशबू से.........
अपनी देह पर ओढ लिया
अपनी आत्मा में समेट लिया मैंने
उसकी स्थिरता को_______
अनंत...अनंत काल के लिए.........
~Monika Agrawal ✒
#writco #writcoapp #writcopoem #hindipoetry #sahitya #hindipoetrycommunity #hindipoetrylovers
© Moni15
नहीं जानती.....!!
बस दौड़े जा रही हूँ अनवरत
उलझती साँसों को थामने का
प्रयास करती
कुछ व्यथित,कुछ बेकल सी.........
हृदय में वेदना का गुबार लिए
इक छोर पकड़ में है उँगलियों के
पोरों के बीच........
कसकर पकड़ लिया है उसे
डर है कहीं छूट न जाए वो भी...........
नि:स्तब्ध रातों में कुछ बेजान,तो
कुछ निख़री सी स्मृतियों की आवाज़ें__
ज़ोर-ज़ोर से दूर कहीं पटल से
कानों में दस्तक देती उन परछाइयों की
पदचाप से सकुचाती,घबराती मैं________
अकस्मात सघन तिमिर को चीरता,
उभरता एक प्रतिबिंब............
जाड़े की धूप सा गुनगुना
अंतर्मन को शीतलता देता.......
सहसा विलीन हो गईं वो हिलोरें लेती
दर्द की लहरें__________
विस्तार हो रहा था उस धुंधली कृति का,
शनै: शनैः कर रहा था वो मुझे आलिंगनबद्ध.........
ध्यान से देखा तो वो प्रेम था..हाँ..प्रेम.....!!
सृष्टि का अद्भुत सुखद सृजन-प्रेम!!
और तभी महक उठी मैं उसकी
बिखरती लोबान सी ख़ुशबू से.........
अपनी देह पर ओढ लिया
अपनी आत्मा में समेट लिया मैंने
उसकी स्थिरता को_______
अनंत...अनंत काल के लिए.........
~Monika Agrawal ✒
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