#लोबान
जीवन है या मृग मरीचिका,
नहीं जानती.....!!
बस दौड़े जा रही हूँ अनवरत
उलझती साँसों को थामने का
प्रयास करती
कुछ व्यथित,कुछ बेकल सी.........
हृदय में वेदना का गुबार लिए
इक छोर पकड़ में है उँगलियों के
पोरों के बीच........
कसकर पकड़ लिया है उसे
डर है कहीं छूट न जाए वो भी...........
नि:स्तब्ध रातों में कुछ बेजान,तो
कुछ निख़री सी स्मृतियों की आवाज़ें__
ज़ोर-ज़ोर से दूर कहीं पटल से
कानों में दस्तक...
नहीं जानती.....!!
बस दौड़े जा रही हूँ अनवरत
उलझती साँसों को थामने का
प्रयास करती
कुछ व्यथित,कुछ बेकल सी.........
हृदय में वेदना का गुबार लिए
इक छोर पकड़ में है उँगलियों के
पोरों के बीच........
कसकर पकड़ लिया है उसे
डर है कहीं छूट न जाए वो भी...........
नि:स्तब्ध रातों में कुछ बेजान,तो
कुछ निख़री सी स्मृतियों की आवाज़ें__
ज़ोर-ज़ोर से दूर कहीं पटल से
कानों में दस्तक...