...

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ताश के पत्तों में लोकतंत्र
आजकल इक्के पर
बादशाह की धाक है....
और बादशाह की
चाटूकार गुलामों से यारी है ....
बेगम नेपथ्य में
डाली जा चुकी है... और
दहले से दुक्की तक ,
अपने वर्चस्व की जंग जारी है...
बस यही वज़ह है कि ,
लोकतंत्र रह गया है नाम का ,
तानाशाही चल रही है और
राजा के गुलाम भी जनता पर भारी है.

© बदनाम कलमकार