तुम्हें चाहने की खता
तुम्हें चाहने की खता की
जिसकी सजा हमें रोज किस्तों में मिल रही
कभी बेकद्री से दो चार होते है तो
कभी आँखो से बेहिसाब बरसात...
जिसकी सजा हमें रोज किस्तों में मिल रही
कभी बेकद्री से दो चार होते है तो
कभी आँखो से बेहिसाब बरसात...