20 views
तुम्हें चाहने की खता
तुम्हें चाहने की खता की
जिसकी सजा हमें रोज किस्तों में मिल रही
कभी बेकद्री से दो चार होते है तो
कभी आँखो से बेहिसाब बरसात होती है
दिल छलनी होता है रोज मगर
फिर भी उम्मीद उसी से ही हम करते है
क्यो हम किसी से इतना प्यार कर लेते है
खुद से ज्यादा उसको अहमियत देते है
जिसको अपनी रत्ती भर भी फिक्र नहीँ
उसकी फिक्र में अपना सारा जीवन बिताते हैं
जिसकी सजा हमें रोज किस्तों में मिल रही
कभी बेकद्री से दो चार होते है तो
कभी आँखो से बेहिसाब बरसात होती है
दिल छलनी होता है रोज मगर
फिर भी उम्मीद उसी से ही हम करते है
क्यो हम किसी से इतना प्यार कर लेते है
खुद से ज्यादा उसको अहमियत देते है
जिसको अपनी रत्ती भर भी फिक्र नहीँ
उसकी फिक्र में अपना सारा जीवन बिताते हैं
Related Stories
29 Likes
10
Comments
29 Likes
10
Comments