...

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तुम्हें चाहने की खता
तुम्हें चाहने की खता की

जिसकी सजा हमें रोज किस्तों में मिल रही

कभी बेकद्री से दो चार होते है तो
कभी आँखो से बेहिसाब बरसात होती है

दिल छलनी होता है रोज मगर
फिर भी उम्मीद उसी से ही हम करते है

क्यो हम किसी से इतना प्यार कर लेते है
खुद से ज्यादा उसको अहमियत देते है

जिसको अपनी रत्ती भर भी फिक्र नहीँ
उसकी फिक्र में अपना सारा जीवन बिताते हैं