मेरी अंतरात्मा की आवाज़
ना किसी के दिल में रहना चाहती हूँ,
ना किसी के शहर में रहना चाहती हूँ,
खूबसूरत गुलाब की सुगंध बनकर,
अपने ह्रदय को सुगंधित करना चाहती हूँ; खुद में रहना चाहती हूँ मैं।
ना किसी से बात करना चाहती हूँ,
ना किसी को देखना चाहती हूँ,
पंछी की तरह खुले आसमान में उड़कर,
प्रकृति के सौंदर्य को महसूस करना चाहती हूँ; खुद में रहना चाहती हूँ मैं। ना दुनिया के कायदे मानना चाहती हूँ,
ना अपनी छवि से किसी को मोहित करना...
ना किसी के शहर में रहना चाहती हूँ,
खूबसूरत गुलाब की सुगंध बनकर,
अपने ह्रदय को सुगंधित करना चाहती हूँ; खुद में रहना चाहती हूँ मैं।
ना किसी से बात करना चाहती हूँ,
ना किसी को देखना चाहती हूँ,
पंछी की तरह खुले आसमान में उड़कर,
प्रकृति के सौंदर्य को महसूस करना चाहती हूँ; खुद में रहना चाहती हूँ मैं। ना दुनिया के कायदे मानना चाहती हूँ,
ना अपनी छवि से किसी को मोहित करना...