kitabi sa ishq
अाज बहुत दिनों बाद, आयी वो पुरानी किताबें याद;
अलमारी के किसी कोने में थी जो सजायी,
एक वक़्त गुजरा तो, फिर अाज वहाँ से उठायी;
धूल उन पर चमक रही थी, जाने क्यूँ ,फिर भी वो महक रही थी;
उसके कुछ अक्षर मिट चुके थे, शायद आख़िरी पन्ने फट चुके थे!
पहले पन्ने पर, धुंधला सा...
अलमारी के किसी कोने में थी जो सजायी,
एक वक़्त गुजरा तो, फिर अाज वहाँ से उठायी;
धूल उन पर चमक रही थी, जाने क्यूँ ,फिर भी वो महक रही थी;
उसके कुछ अक्षर मिट चुके थे, शायद आख़िरी पन्ने फट चुके थे!
पहले पन्ने पर, धुंधला सा...