मानसिक विडंबना
कर रहा कोई प्रगति पथिक ,तो बैर द्वेष न करो
जल रहा तेरा तन मन ,फिर भी आवेश न करो
न देख तो उसकी सफलता को सरलतम जानकर
न जाने कितने ठोकर मिले होंगे उसे राह में
काँटो पे चला होगा वो कर्म को प्रधान मानकर
राष्ट्र को तोड़कर तुम अलग प्रदेश न करो
मेहनत की...
जल रहा तेरा तन मन ,फिर भी आवेश न करो
न देख तो उसकी सफलता को सरलतम जानकर
न जाने कितने ठोकर मिले होंगे उसे राह में
काँटो पे चला होगा वो कर्म को प्रधान मानकर
राष्ट्र को तोड़कर तुम अलग प्रदेश न करो
मेहनत की...