...

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विश्व गुरु
गर्मी-सर्दी हर मौसम में, आंख लगाए सरहद पर
दिखा रहा दुश्मन को सीना, शान तिरंगे की जद पर
देश की मिट्टी, देश की इज़्ज़त, के रखवाले ऐसे हैं
गोली खाकर भी न हटेंगे, कदम लौटकर पनघट पर
लड़ जाते हैं, मर जाते हैं, दुश्मन जो हो भिड़ जाते हैं
मौत खड़ी हो आगे फिर भी, अपनी ज़िद पे अड़ जाते हैं
क़दम-क़दम पे चूमें धरती, गाथा ऐसी झूमे धरती
चरणों में सिर उसका रख दें, भारत की जो छीने धरती
दौर गए वो कठपुतली के, जब ऊंगली पर नचते थे
फूट-राज की वहम नीति में, भाई-भाई पे हंसते थे
कुछ अंग्रेजों के डर से, कुछ सिक्कों में बिक जाते थे
उसी देश में भगत, गुरु से, फांसी पर चढ़ जाते थे
कुछ अंधेरी रातों से, सुरज क्या धूमिल हो सकता है
विश्व गुरु बनने वाला, ये भारत कब तक सो सकता है
तुम्हीं किरण हो आशा हो, भारत के कल की भाषा हो
शौर्य दिखा दो हर उस दंभ को, जो कहते तुम कांसा हो
तुमसे ही है शान देश की, तुमसे ही पहचान देश की
तुम ही इस अखण्ड भूमि के, मंथन की परिभाषा हो
जागो यारों! लड़ना छोड़ो, गलत राह पे बढ़ना छोड़ो
एक बनो सब एक देश में, भड़कावे में चढ़ना छोड़ो
छोड़ो धर्म जात पे लड़ना, आपस में लड़ करके मरना
नया करो कुछ मिल कर ऐसा, बने एक स्वर्णिम जग अपना...
© Er. Shiv Prakash Tiwari