...

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शायद कभी तो आयेगा वह दिन
उसमें उसकी कोई गलती नहीं
गलती तो मेरी हैं
मैंने हर बार उसकी गलतियों को नजरंदाज की
उनके गुस्से को खामोश होकर सहती आई
मैंने अपनी हक़ के लिएं कभी इक शब्द भी नहीं बोली
क्योंकि मुझे नही आता ऐसे किसी से लड़ना झगड़ना
शायद इसी वजह का उसने फायदा उठाया
मुझे हर दिन तकलीफ देते आए
उसने तो मुझे मरने को भी छोड़ दिया था
ये तक कह दिया था की तुम मर क्यों नहीं जाती , तुम किसी काम की नहीं
नजाने ऐसे और कितनी बातें हैं
जो मुझे वो रोज तोड़ता हैं
मेरी तिरस्कार करता हैं
मुझे मेरी ही नज़र में गिरा देता हैं
मुझे फालतू होने का महसूस करवाता हैं
मेरी ज़िंदगी को मज़ाक बनाकर रख दिया हैं
और एक मैं
फिर भी उनसे दूर नहीं जा पा रही
उनसे नफरत नहीं कर पा रही
उनसे दूर जाने की ख्यालों से डर जाती हूं
और एक उम्मीद लगाई बैठी हूं
कभी तो समझेगा वो मेरे प्यार को
मेरी सहन करने की वजह को
कभी तो वो मुझ से प्यार से बात करेगा
मेरे पास बैठ कर एक कप चाय पिएगा,,,
हा,,,शायद कभी तो आयेगा वह दिन ,,,!!!