...

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गुड़िया पापा की
ना खैर ना खबर थी
इस दुनिया दारी की।
मैं तो बस बनके रही
गुड़िया अपने पापा की।।

हर कदम पर जिसने की
रक्षा मेरे ख्यालों की।
कुछ भी ना मैं बन पाती आज
ये है जीत उनके त्यागों की।
मैं तो बस बनके रही
गुड़िया अपने पापा की।।

उंगली पकड़ कर चलना सिखाया
दी ताकत फिर उड़ने की।
मेहनत किस्मत कुछ भी ना होते
बात थी ये उनके विश्वासों की।
मैं तो बस बनके रही
गुड़िया अपने पापा की।।

कहाँ खो गए दूर चले गए
फिकर भी ना की अपनी लाडली की।
कौन बुलाएगा गले लगाएगा
कौन सुनेगा कहानी मेरे जज़्बातों की।
मैं तो बस बनके रही
गुड़िया अपने पापा की।।