...

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बिना कुछ बोले चला गया

जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो ठगा गया।

बेवक्त जो वक्ता बन गया,
मन ही मन में सिमटता चला गया ।

न उसे कुछ पाने की लालसा ,
न उसे कुछ खोने का गम ।

निभाए सारे कर्तव्य ,
दिल में छुपा कर हर एक गम ।

सबकी आंखों में आसूं और दिल में दर्द दे गया ,
बिना कुछ बोले चला गया ।


— अंकिता द्विवेदी त्रिपाठी —


© Anki