...

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राही

चलता चल तू अपनी धुन पर, क्यू सोंचे वो साथ नहीं है !
राही तुम हो राही मै हु, फिर भी मंजिल एक नहीं है !
कही नमक है कही मलाई, सबका खाना एक नहीं है !
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, कहने को सब एक नहीं हैं !
फिर भी जब प्यासा राही हो, पानी मे कोई भेद नहीं है !
कांटे, पत्ते, फूल और फल, सबके गुण मे मेल नहीं है !
इन चारो का मूल एक है, फिर भी अवगुण एक नही है !
जीवन का आधार एक है, फिर भी ईश्वर एक नहीं हैं !
तू क्यू सोंचे इतना राही, जीवन साथी साथ नहीं है !
जीवन पथ पर मोड़ बहुत हैं, जीवन अड्डा एक नहीं है !
कहते हैं रस्ता लम्बा है, मंजिल फिर भी दूर नहीं है !