मुझसे
करते हैं रश्क बिना देखे ही मुझसे,
सुनेंगे सुख़न क्या वो मेरे ही मुझसे?
मैंने रसाई में अपने रक़ीबों को खींचा,
क्या हाथ दोस्ती का वो नोचेंगे मुझसे?
कोशिशें की पामाल राहों पे चलने की,
ज़मीनें मेरे पांव तले की छीनेंगे मुझसे?
हैं किए जो सज्दे अब तक इबादत...
सुनेंगे सुख़न क्या वो मेरे ही मुझसे?
मैंने रसाई में अपने रक़ीबों को खींचा,
क्या हाथ दोस्ती का वो नोचेंगे मुझसे?
कोशिशें की पामाल राहों पे चलने की,
ज़मीनें मेरे पांव तले की छीनेंगे मुझसे?
हैं किए जो सज्दे अब तक इबादत...