...

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कोई बोल रहा था
कमाई कितनी होगी छोड़,मेहनत का प्रयास ही कर रहा था
जो मुझे देने वाले सहयोग,उसे दूसरा कोई कान भर रहा था
मेरी हार वो चाहता हो,और अप विषैला चिट्ठा खोल रहा था
में सुनकर भी ना सुनता था,की कोई कुछ वहां बोल रहा था

मेरे कान कम,हाथ ज़्यादा,मुंह तो मौके पर ही चलता था
हर रोज बदलती तस्वीरें जहां,कोई बनता,कोई बिगड़ता था
मेरी देह नहीं हाति की,पर चाल जरूर वैसा ही चल रहा था
में सुनकर भी ना सुनता था,की कोई कुछ वहां बोल रहा था

दुख में हाज़िर हूं,सुक में भी हाज़िर हूं,पर नहूं चालबाजी में
हसता,रोता,दात फटकारता में रहता हूं,नाकी दुगलेबाजी में
में उचित वाक्य कहता था,ना की उसका मन तौल रहा था
में सुनकर भी ना सुनता था,की कोई कुछ वहां बोल रहा था

उड़ना ही है अगर तो साथ चलो,दोनो साथ में उड़ान भरेंगे
जब तक होगा मुकाबला जग से,मांग जब होगी,साथ रहेंगे
भौंक,पुकार,अनगर्जी कार्य को दुनिया जैसे भूल रहा था
में सुनकर भी ना सुनता था,की कोई कुछ वहां बोल रहा था
ADITYA PANDEY©