...

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ढूंढ रहा हुं अपनी कविता...✍️
मैं ढूंढ रहा हुं ,अपनी कविता
अंतर्मन अल्फाजों में,
कुछ ख्वाबों में,कुछ ख्यालों में,
कुछ दिनचर्या के काजो में,

मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता
फुटपाथ पर सोए लोगों में,
उन भूखे-प्यासे बच्चों में,
तो कुछ निर्धनता के सायों में,

मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता
शहरों की संकुची गलियों में,
बंद कमरों के पहरो में,
और कुछ झूठ ओढ़ते चेहरों में

मैं ढूंढ रहा हु,अपनी कविता
अपने भारत की माटी में,
हिंदू मुस्लिम की बातों में,
कुछ बॉर्डर के हालातों में,

मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता
राजनीति के कीचड़ में,
कुछ झूठे सच्चे वादों में,
घोटालों की यादों में


मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता
शर्म हया के मोल भाव में,
चीख में,कुछ पीड़ा में,
कुछ नित दिन होते घावों में,

मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता
होते हर रोज गुनाहों में,
कुछ दुर्बल को दबाने में,
कुछ प्रबल को छिपाने में,

मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता
बचपन की विस्तृत माया में,
कुछ पापा के ऊंचे कंधों में,
कुछ मां के आंचल की छाया में

मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता............................✍️
© ~writerRj~✓