ढूंढ रहा हुं अपनी कविता...✍️
मैं ढूंढ रहा हुं ,अपनी कविता
अंतर्मन अल्फाजों में,
कुछ ख्वाबों में,कुछ ख्यालों में,
कुछ दिनचर्या के काजो में,
मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता
फुटपाथ पर सोए लोगों में,
उन भूखे-प्यासे बच्चों में,
तो कुछ निर्धनता के सायों में,
मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता
शहरों की संकुची गलियों में,
बंद कमरों के पहरो में,
और कुछ झूठ ओढ़ते चेहरों में
मैं ढूंढ रहा हु,अपनी कविता...
अंतर्मन अल्फाजों में,
कुछ ख्वाबों में,कुछ ख्यालों में,
कुछ दिनचर्या के काजो में,
मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता
फुटपाथ पर सोए लोगों में,
उन भूखे-प्यासे बच्चों में,
तो कुछ निर्धनता के सायों में,
मैं ढूंढ रहा हुं,अपनी कविता
शहरों की संकुची गलियों में,
बंद कमरों के पहरो में,
और कुछ झूठ ओढ़ते चेहरों में
मैं ढूंढ रहा हु,अपनी कविता...